ओएसआई मॉडल क्या है?

अंतर्राष्ट्रीय मानक संगठन (आईएसओ) ने ओएसआई (ओपन सिस्टम इंटरकनेक्ट) 1978 में नेटवर्क संचार के लिए एक मॉडल के रूप में विकसित किया है। OSI मॉडल पूरे नेटवर्क में सूचना हस्तांतरण के लिए एक मॉडल के रूप में प्रयोग किया जाता है। यह मॉडल कई दिशानिर्देशों को सेट करता है, जिसमें विभिन्न ट्रांसमिशन मीडिया कैसे व्यवस्थित और परस्पर जुड़े हुए हैं, कैसे विभिन्न भाषाओं का उपयोग करने वाले नेटवर्क डिवाइस एक दूसरे के साथ communicate करते हैं, कैसे एक नेटवर्क डिवाइस दूसरे नेटवर्क डिवाइस से संपर्क करते है, कैसे और कब डेटा पूरे नेटवर्क में प्रसारित होता है, कैसे डेटा सही डिवाइस को भेजा जाता है और कैसे पता चलता है कि नेटवर्क डेटा ठीक से प्राप्त हुआ है या नहीं।
OSI मॉडल यह भी वर्णन करता है कि नेटवर्क हार्डवेयर तथा सॉफ्टवेर एक दूसरे के साथ लेयर के रूप में कैसे कार्य करते हैं।
OSI मॉडल की लेयर्स:
इसमें 7 लेयर्स होते हैं, एप्लीकेशन, प्रेजेंटेशन, सेशन, ट्रांसपोर्ट, नेटवर्क, डेटा लिंक और फिजिकल(ऊपर से निचे कि ओर), जिसे हम विस्तार से जानेंगे।

1. फिजिकल लेयर (Physical Layer):
OSI मॉडल की सबसे निचली परत इलेक्ट्रिकल तथा फिजिकल कनेक्शन के रूप में रॉ अनस्ट्रक्चर्ड डेटा बिट्स को नेटवर्क में फिजिकल लेयर से भेजने वाले डिवाइस तथा प्राप्त डिवाइस से कैसे संबंधित है। जैसे - वोल्टेज, डेटा रेट्स इत्यादि। इसलिए इस लेयर को बिट यूनिट भी कहा जाता है। फिजिकल लेयर में संसाधन जैसे नेटवर्क हब, केबलिंग, रिपीटर्स, नेटवर्क एडेप्टर या मॉडेम मिल सकते हैं।
इसमें डिजिटल सिग्नल इलेक्ट्रिकल सिग्नल में बदला जाता है साथ ही नेटवर्क का आकार(topology) का कार्य भी किया जाता है। यह मॉडल यह भी वर्णन करता है कि कम्युनिकेशन वायरलेस होगा या वायर के साथ।
- इसके द्वार यह परिभाषित किया जाता है कि नेटवर्क में दो devices के बीच कौनसा ट्रांसमिशन मोड होगा- सिम्पलेक्स(simplex), हाफ-डुप्लेक्स(half-duplex) या फुल डुप्लेक्स(full duplex)।
- यह लेयर परिभाषित करती है कि दो या दो से अधिक उपकरणें(devices) कैसे कनेक्ट होती है।
- यह सूचनाएं को ट्रांसमिट करने वाले सिग्नल को निर्धारित करता है।
OSI मॉडल में यह नीचे से दूसरे स्थान का लेयर है। डेटा लिंक लेयर पर नोड-टू-नोड डेटा ट्रांसफर करने के लिए सीधे जुड़े नोड्स का उपयोग किया जाता है जहाँ डेटा को फ़्रेम में पैक किया जाता है। इस लेयर में नेटवर्क लेयर द्वार भेजे गए डेटा के पैकेटों को decode तथा encode किया जाता है साथ ही यह सुनिश्चित करता है कि ये पैकेट्स त्रुटि के बिना हो। इस लेयर को फ्रेम यूनिट भी कहा जाता है।
डेटा लिंक लेयर का कार्य प्रणाली:
- यह लेयर फिजिकल रॉ बिट स्ट्रीम को packets में translate करती है, इन पैकेट को फ्रेम कहा जाता है जिसमें हैडर तथा ट्रेलर को जोरी जाती है।
- यह त्रुटि को भी कंट्रोल करता है तथा ट्रेलर के साथ CRC(Cyclic Redundancy Check) को जोरा जाता है जिससे डेटा त्रुटि रहित हो।
- इसका मुख्य कार्य फ्लो कंट्रोल करना है। किसी भी तरह का डेटा करप्शन को रोकने के लिए इसमें रिसीवर तथा सेन्डर दोनों तरफ से एक नियत डेटा रेट को मेन्टेन किया जाता है।
- दो या दो से अधिक उपकरणें एक कम्युनिकेशन चैनल से जुडी हो तब यह निर्धारित करती है कि किस device को एक्सेस दिया जाए।
- यह फ्रेम के header में सोर्स और डेस्टिनेशन(गंतव्य) एड्रेस को जोरती है जिस एड्रेस का प्रयोग इन्टरनेट में device की पहचान करने के लिए किया जाता है।
- इस लेयर की मुख्य जिम्मेदारी अलग-अलग devices में लॉजिकल कनेक्शन उपलब्ध कराना भी है।
- यह फ्लो कंट्रोल और एरर कंट्रोल दोनों प्रकार के कार्यों को करती है तथा दो प्रकार की सर्विस कनेक्शन के साथ और कनेक्शन के बिना प्रदान करती है।
- इसकी मुख्य जिम्मेदारी डेटा को एक कंप्यूटर से दूसरे कंप्यूटर तक ट्रांसमिट करना है।
- यह दो प्रक्रियाओं के मध्य संवाद का निर्माण करती है।
- अगर ट्रांसमिशन में कोई त्रुटि आ जाती है तो उस ट्रांसमिशन को दुबारा किया जाता है।
- इस लेयर का प्रयोग प्राइवेसी के लिए किया जाता है।
- यह ईमेल को फॉरवर्ड तथा स्टोर करने की सुविधा देती है साथ ही डेटाबेस से डायरेक्टरी को एक्सेस भी कर सकते हैं।
- इस लेयर के द्वार यूजर रिमोट कंप्यूटर से फाइल्स को एक्सेस कर सकता है साथ ही फाइल्स को पुनः प्राप्त कर सकता है।
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